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Sunday, January 10, 2016

माँ बिन मायका

                                        

माँ बिन मायका,जैसे जल बिना मछली
कैसे रह पाऊंगी मैं, किससे बताऊंगी मैं
भाभी को बताऊंगी तो बुरा मान जाएेंगी
भईया को बताऊँ,वो भी सही सही नहीं मानेगें
पिता भी कहाँ बर्दाश्त कर पाऐंगे इसे

हर सामान में बस वो दिखती है
हर पकवान में मुझे वो दिखती है
लगता है, अभी आकर पूछ बैठेगीं
बोल बेटे,क्या चाहिए तुझे ???

ग़मो की परछाई से भी दूर रखती है
खुशियों से दामन भर देती है
बिन आहट सबकुछ समझ लेती है
इतना क्या कोई समझ पाएगा मुझे

एक दिन किसी तरह काट लेती हूँ
दुसरा दिन भी कट जाता है
तीसरे दिन नहीं सहा जाता मुझसे
ताना देते हैं लोग,जल्दी चली आई कैसे
पूछा नहीं क्या किसी ने मायके में तुझे

क्या-क्या बताऊँ,कैसे बताऊँ
कुछ भी नहीं अब वहाँ भाता मुझे

------ आँखें खुली ये एक बुरा ख़्वाब था मेरा
काँप गई थी मेरी रूह भी अबतक
ख़्वाब अगर इतनी भयावह है तो
हकिक़त को कैसे झेल पाऊंगी मैं

खुदा उन्हें सलामत रख्खे
हर एक पल उनका निगहबान रहे
दुआँ दिनरात यही करती हूँ उनसे
उम्र के किसी भी पड़ाव पे रहूँ
उनका साथ कायम रहे

क्योंकि-------बेहद निश्छल प्यार देती है माँ
बदले मे कुछ नहीं लेती है माँ
आज मैं भी एक माँ हूँ फिर भी
मेरी साँसों में रहती है माँ !!!

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