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Monday, January 11, 2016

फ़ुर्सत में

फ़ुर्सत से कभी बैठेगें तो
ज़िक्र करेगें हम उनका                        
फ़ासलें बढ़ायें किसतरह
बर्बाद किया मुझे किसतरह
हमने तो उनके अक्स को
दिल में इस तरह बिठा लिया
पत्थर के मूरत को हमने
ईश्वर का दर्जा दिया
उसने मगर हमदोनो को
नदी के दो किनारे बना दिया
जो मिल न पायें इसतरह
जो जुड़ न पायें इसतरह
बिजली गिराया दिल पे
ये मैं बयां करू किसतरह
हमने ज़मी बनके
दामन अपना बिछा दिया
सोची थकान होगी तो
वे आराम करेगें किसतरह
उसने मगर खुद को आसमां बना लिया इसतरह
जो मिल न पायें इसतरह
जो जुड़ न पायें इसतरह
दिल बार-बार टूटा मेरा
बयां करू किसतरह
वो फ़ासलें बढ़ायें इसतरह
हम पास जायें किसतरह !!!

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