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Friday, January 8, 2016

" बला की खूबसूरत थी वो "

                               

बला की खूबसूरत थी वो'
संगेमर्मरी बदन था उसका
जब भी मुस्कुराती
दुधियाँ छटा बिखेर जाती
छत पर निकलती तो लगता
चाँद उतर आया हो
गली में निकलती तो
हर आती-जाती नज़रे उसी पे टिकी होती
मैं भी तो नज़रे बचाकर
निहारा करता था उसे
नाम था उसका मोहिनी
'बला की खूबसूरत थी वो'

एक दिन गली में उसने मुझे रोका फिर टोका
सुनो हर कोई मेरी खूबसूरती को निहारता है
एक तुम ही नहीं देखते
पहले मैं थोड़ा डरा,झिझका
फिर हिम्मत जुटाकर बोल गया
सुनो तुम अपना नाम चाँदनी क्यों  नहीं रख लेती
तुम्हारे संगेमर्मरी खूबसूरती पर                 तुम्हारा नाम फबता नहीं
वो खिलखिलाती हुई नज़रो से ओझल हो गयी थी

वो शाम मेरी मुहब्बत की
सुबह बनकर आयी
उसने भी दबी जुबां में शायद इज़हारी जतायी
एक दिन राह में फिर नज़रे टकराई
वह मुस्कुराई फिर बोली
सुनो मैं चाँदनी हूँ
दोस्ती करोगे मुझसे
मैने भी बहुत शराफ़त से                         उसकी तरफ हाथ बढ़ाया
वह फिर मुस्कुराई
आँखो ही आँखो में कुछ बोल गई
सोचा था क्या
किस राज को खोल गई

सुनो मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहती हूँ
सभी बेगानो में एक तुम्ही अपने से लगे
इसलिए बताना चाहती
ये है मेरा हमसफ़र
मुहब्बत करते है हम एक-दुजे से
और तुम हो मेरे सबसे अच्छे दोस्त हाँ दोस्त
क्योकि जब सभी की निगाहें
मुझे गलत लगती थी
तब एक तुम्हीं ऐसे थे
जिसमे मुझे पाक़िजगी दिखती थी

मेरे होंठो पे हँसी आई
आँखे डबडबायी
नज़रे दूर तक
दोनो को साथ जाती देखती रही
शाम हो आई मेरे मुहब्बत की शाम
मैं गुनगुनाता हुआ चल पड़ा
साथ थी तन्हाई
दिल से आवाज आई

"पाक़िजगी का लेबल लगा गई
वो मेरा दिल चुरा गई
मैं करता रहा जिसका इन्तज़ार
वही मुझे अंगुठा दिखा गई"
'खूबसूरत सी बला थी वो'!!







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