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Saturday, January 2, 2016

नये साल का जश्ऩ

नये साल का जश्ऩ मनायें
नये तरिकों को अपनायें
सोच को थोड़ा विकसीत कर के
चलो धरती को स्वर्ग बनायें
जहाँ जातिवाद न भ्रष्टाचार                             न आतंकवाद न शोषण हो
साम्प्रदायिकता का जन्म ही न हो
जड़ से ऐसे काट गिरायें
धर्म-कर्म के नाम पे जो                               खेल रहे हैं खुन की होली
आम लोग ही पीसतें इसमे
ये बातें समझें-समझायें
भूख लगी हो गर भूखे को
रोटी की पहचान न करता
हिन्दु-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई
एेसा कोई नाम न धरता
अमीर-गरीब और ऊँच-नीच से
ऊपर उठकर बात चलायें
ईश्वर जब कोई भेद न करता
हम क्यो ये मतभेद बढ़ायें
सूरज-धरती-चाँद-परिन्दे
किस देश के वासी हैं
नदियाँ-झरनों के पानी पे
किसका एकाधिकार बाकी है
जन्म किसी बच्चे का हो जब
माथे पे क्या धर्म लिखा है
मन को जरा टटोले तो
उत्तर खुद के अंदर पायें
भ्रष्टों के चक्कर मे पड़कर
देश को न बदनाम करायें
खुद भी सोचे खुद ही समझे
एक प्यारा हिन्दुस्तान बनायें!!

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