Search This Blog

Saturday, February 20, 2016

मुझे हरबार बचाया

बज़्मे मय उसने बुलाया
तो कुछ याद आया
थोड़ी जब उसने पिलाया
तो उसकी सुन पाया
अर्सए दराज़ तक
जिन्हें रूह में दफनाया था हमने
हालेदिल उसने बताया
हमें समझ आया
हम समझते रहे बेवफ़ा जिन्हें
सरे बाज़ार रूसवाईयाँ दी जिन्हें
बात जब खुलकर आया
बहुत तड़पाया
उसने क्या- क्या न किया हमारे खातिर
हमारे वजूद को जिन्दा रखने के खातिर
हारकर मुझको जिताया
बहुत शर्म आया
अब क्या-क्या हिसाब दूँ
उनकी मेहरबानियों का
ख़ुद की नज़रों में
आज इतना गिर गया
जब नापाक कहकर उसे
सबने बुलाया
मैं कैसे सह पाया
मेरी ज़िंदगी बनाकर
ख़ुद निकल पड़े
एक एैसी राह पे
जिसकी न कोई मंज़िल
न कोई रास्ते
साथ दूँ भी तो कैसे
मेरी नफरत ने
दुजा आश्याँ बसाया
बहुत पछताया
मेरी ज़िंदगी आज
किसी और की अमानत है
उनको भी हमसे ही मोहब्बत है
कैसी दो राहों पे आया
ख़ुद पे ही कहर ढ़ाया
गुनाहगार हम थे
सज़ा भी हमें ही मिलती
मगर उनकी दुआँओ में
वो कशिश थी
मुझे हर बार बचाया
खु़दा नज़र आया !!


बज़्मे मये- शराब की महफिल,
अर्सये दराज़ -काफी लंबे समय तक

No comments:

Post a Comment