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Friday, February 26, 2016

बन कर वो आये मेह्रबाँ

बन कर वो आये मेह्रबाँ
कुछ काम कर गये
करना था अपना नाम कुछ
हमें बदनाम कर गये !!
मालिक तेरे जहान् में
कोई भी ख़ुदा नहीं
गलती थी मेरी सोच में
जो उनको खु़दा कहें !!
पत्थर के शहर में भला
दिल कैसे हो मोम का
आँसुओ से पिघलता है
दिल ख़ुदा का भी कहाँ
इंसानियत का नाम
वो बेनाम कर गये !!
लेकर के वो गये थे हमें
फूलों के गाँव में
कहते थे हम बिठाँऐंगे
तुम्हें पलकों की छाँव में
सारे किस्से ख़्वाब में
तमाम कर गये !!
दिल को तलब है अभी भी
उस खुदगर्ज की
आँखो मे नमी है अभी तक
उनकी दी हुई
जख़्मो का सारा दर्द वो
मेरे नाम कर गये !!
मेरे ख़ुदा एकबार भी
उन्हें सज़ा मिले
चाहत थी मेरी आँखों में मगर
बद्दुआ न दे सके
मुझको मेरी चाहत का
कुछ तो सिला मिले !!


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