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Thursday, May 19, 2016

थक गया मैं ख़ुद से लड़ अये ज़िंदगी

एक सदा तो दे मुझे अये ज़िंदगी
तेरे बिन अब नींद भी आती नहीं

भटकता फिर रहा आबुदाने की तलाश में
माँग कर खा लूँ  मेरी आदत नहीं

मेहनत से मैं पीछे नहीं हटता मगर
तक़दीर की लकीरें भी साथ दे कहीं

धोखा,रिश्वत,बेईमानी छिपाकर काम करूँ
मेरा ज़मीर ये ग्वारा करता नहीं

ईमान की कुर्सी पर बैठ करता हूँ काम
देखता हूँ बिन मेहनत
कुछ पा लेते आसमान

मैं चकित हूँ कड़ी मेहनत कर के भी
मैं दूर तक नज़र आता नहीं

पाया था जो ज्ञान किताबों में
उन किताबों मे ये सब लिखा नहीं

डिग्री के साथ ये गुण भी चाहिये
ये किसी अखबार में छपा नहीं

देखता हूँ मुझसे पीछे आये जो
आज बड़े घरों में रहते और
बड़ी गाड़ियों में घुमते हैं

सोचता हूँ कौन से पन्ने पढूँ
किस विद्या मंदीर में जाकर ज्ञान लूँ
मुझमे भी हुनर ये आ जाये कहीं

थक गया ख़ुद से लड़ के अये ज़िंदगी
अब डर लगता है
उन कतारों में

मैं भी शामिल न हो जाऊँ कहीं !!






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