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Monday, May 2, 2016

दर्देदिल की दवा माँगी थी

दर्देदिल की दवा माँगी थी
मुहब्बत के बदले वफ़ा माँगी थी
जख़्मों पर नमक छिड़क चल दिये
जिनके लिये कभी दुआ माँगी थी

इंतजार के अनगिनत लम्हें
गुज़ार दिये जिनके इन्तज़ार में
वो आये मगर
कहकर चल दिये कि फुर्सत नहीं
ताउम्र जिनके इंतज़ार में
काट देने की सज़ा माँगी थी

हाय वो जालिम नज़र थी
उस सूरत मे वो कशिश थी
भूल न पाया दिल जिसे अबतक
मेरी आँखो में जिसने कभी
रहने की जगह माँगी थी

भटकती रही विरानों में
जलता रहा मन तन्हाई में
पूछता रहा  ज़ख़्मखुर्द दिल से
क्यो सज़ा दे रही खुद को अबतक
जिसने परछाईयाँ भी ना देखी मुड़ के
उस शख़्स की हरवक़्त खैरख़्वाह माँगी थी

काश दिल दो चार होते
एक टूटता दुजे न रोते
फिर दर्द का एहसास न होता
दिल कहता एक ही तो टूटा है
और भी है मेरे पास
हँस के हम भी कह लेते
जा अये मुहब्बत मेरे और भी दिल हैं
तेरे तोड़ने की वजह नहीं माँगी थी !!

               













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