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Wednesday, June 15, 2016

रजनीगंधा पुष्प खिलने लगे हैं

सहने मकाँ में रजनीगंधा पुष्प
अब खिलने लगे हैं
तुम आकर उसकी खुशबू साँसों में भर लो
तुम्हें खुश देखकर इस दिल का
कँवल भी खिल जाये
बेतकल्लुफ़ ये आरजू कर लो

शाख दर शाख हैं शाखे गेसू
कब से इनकी तरफ देखी नहीं हूँ
तोड़कर कुछ रजनीगंधा पुष्पों को
मुट्ठी में बाँधे बैठी हुई हूँ
शामगाह अंधेरी रात में ढ़लने लगी है
आकर गेसूए  सँजा जाओ

दामन की आड़ में हवा से बचाकर
जलता चिराग जगमगाई हुई हूँ
ये सोचकर कि कोई अब यहाँ रहता नहीं
तुम उल्टे पाँव वापस न लौट जाओ

हमारी सायागाह तुम्हारी बाँहे हैं
जिसमे मैं महफूज़ रहती हूँ
दुनिया के स्याह सवालातों से
कभी कभी मगर डर -सी जाती हूँ
रफ्ता रफ्ता ज़िंदगी में आये हो
रफ्ता रफ्ता रिश्ते को नाम दे जाओ

शाम की लालीमा देख कर अब तो
पक्षी भी अपने-अपने आशियाँ  लौटने लगे हैं
मुझे इंतज़ार तुम्हारा है क्योंकि
रजनीगंधा पुष्प साथ तुम आैर मैं होगें
मुझपे बादे सहर बनके छा जाओ

                                

सहने मकाँ - घर का आँगन
बेतकल्लुफ़ - निस्संकोच
आरजू - इच्छा
शाख दर शाख - उलझा हुआ
शाख़े गेसू - बालों की लट
शामगाह - संध्याबेला
गेसूए - जुल्फे
सायागाह - आराम की जगह
महफूज़ - सुरक्षित
स्याह सवालातों - गलत पुछने की क्रिया
रफ्ता- रफ्ता - धीरे धीरे
आशियाँ - घर
बादे सहर - सुबह पूर्व से चलने वाली
               शीतल मंद वायु

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