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Friday, June 17, 2016

लग गई मेंहदी

कि उनके हाथों में सँज गई मेंहदी
पहन चुनर सुर्ख मेरे लहु की
वो चल पड़े मेहमानों की तरह

बातें करते हैं सबसे हँस-हँस कर
जब भी पड़ जाती है मुझपे नज़र
मुँह फेर लेते है बेगानों की तरह


मेरे दिल का बना खिलौना
पहले जी भर के खेला अर्मानों का खेला
फिर बेच आये बेसामानों की तरह

किसके बातों पर एतबार करूँ
किसके आँखों मे मुहब्बत पढ़ लूँ
वो बन गये बेजबानों की तरह

पलकें झुकी और आँखे नम
उस खुदगर्ज के साथ बिताये दिन
याद आते है एहसानों की तरह

बुरा जो चाहूँ तो किसका
जो मेरी साँसे है उसका
नहीं हूँ मैं शैतानों की तरह !!

                                                          
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