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Wednesday, July 6, 2016

ख़ता क्या थी

मासूम सुरतों की ख़ता क्या थी
न वो खुदा जानते थे न ईश्वर को
ख़ुद्दारी, इंसानियत उनके वजूद में थी
क्या इतना काफी नहीं था जीने को

बर्बाद हुआ फिर किसी का आशियाँ
दुसरा कोई ये दर्द समझे क्यूँ
जिसपे बिती है वही जानता है
पूरी ज़िंदगी भी कम है जख़्म सीने को

बिखरे होगे कितने सपने अपने
ख़ुद अपनी मौत को सामने पाकर
ये दर्द भी महसूस हो क्यूँ
जो ज़िंदा ही है ऐसे दर्द देने को

जिसने बाँटी नही आकाश ज़मी
जिसने बाँटी नहीं हवा पानी
उसी के नाम पे बँट गई ज़िंदगीयाँ
क्या बीता होगा उस मदिने को

ये कैसा वक़्त आ गया यारों
न इंसानो की किमत रही
न इंसानियत की
ऐसी दरिंदगी पर खुदा भी तड़प
कह रहा होगा
अब बस कर
क्या इतना लहु काफी नहीं
तेरा रूह  भिंगोने को

चलो माना बहुत मुनासिब किया
बेगुनाहों को सज़ा दे दिया
बस एकबार ये सज़ा ख़ुद पे
आज़मा कर देखो
शायद वो माफ कर दे और बचा ले
दोज़ख की आग से
तुम्हें जलते रहने को !!
                                



                                                     




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