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Thursday, July 28, 2016

पुकार सुनो भोलेनाथ

                                                

हे शिव शंकर हे करूणाकर
सुन लो मेरी पुकार
अंदर-बाहर तमस घनेरा
समझ ना पाऊँ
मैं जाऊँ किस द्वार

कर दे उजाला जीवन में थोड़ा
भर अंदर ज्ञान प्रकाश
आश की ज्योत जलाये बैठी
द्वार से तेरे
जाऊँ ना खाली हाथ

भव सागर के बीच फँसी है
जीवन रूपी नाव
तुम बिन कौन बने खेवाईया
पार लगाये
भवभय से उस पार

तुम बिन कौन बचाये लज्जा
समझे परायी पीड़
जग हँसता तू भी ना समझता
भक्त प्रभु की
कैसी ये जोड़ी

नीलकंठ हे विषधारी
विष का प्याला
तूने  पीया हरबार
मुझको भी जीवन-विष पीना
सिखला दें
मै भी बाँटू खुशियाँ
विष के बदले हरबार!!
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तमस-अंधकार
घनेरा-बहुत
खेवाईया- नाव खेने वाला
भव सागर- जीवन सागर
भवभय- संसार मे बारबार जन्म लेने मरने का                  भय
परायी पीड़-दुजे का दर्द
जीवन-विष-जीवन का बुरा वक़्त रूपि जहर

                                      
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