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Thursday, October 27, 2016

दिल मे आग-सी लगा दी है

                               
दिल में इक आग-सी लगा दी है यार ने
प्यार करने  की  ये सज़ा दी है  यार  ने

आने लगा मजा,ख़ुद से बातें करने का
मर्ज़ ये  कौन सी  लगा दी  है  यार  ने

कभी हँसते ख़ुद , कभी परेशां  होते
बेख़ुदी  कैसी ये बढ़ा  दी  है  यार  ने

बज़्म में भी निगाहें सिर्फ उसे ढूंढ़ती हैं
ऐसी  बेचैनियाँ  समा  दी  है  यार  ने

झूम के चली हवा, दिल को गुमां हुआ
रूख पे  जुल्फे  बिखरा दी  है  यार  ने

उसकी हाँ  में हाँ है उसकी ना में ना है
दवा ये कहाँ की पिला दी  है  यार  ने

माना शामिल हैं हम,उसकी नादानियों में
जादू की तीर जो चला दी है यार  ने

लफ़्जो से खेलने की,आदत है उसकी
शब्द को जोड़कर दुआ  दी  है यार ने

                                



Saturday, October 22, 2016

मन साफ करे

                                  
करते हैं लोग साफ रेत-ईंटों की मकाँ
रखते   हैं  गंदगी  अंदर   संभाल  के

जला आतें रावण  बुराईयों  के  नाम
ले आते हैं  बुराईयाँ  दिल में डाल के

करतें हैं पूजा मन मे भगवान ही नहीं
वरना पिघलता दिल पत्थर निकाल के

हैं  राम बगल में औ  छुरी भी बगल में
हर इक बना भगवान अपने ख़याल के

है  खड़ा तन्हा एक  दुसरी तरफ हैं सौ
फिरभी कहता सताता है दम निकाल के

कमजोर को सताने चला आता काफिला
मज़बूत की गलती पर खड़ा पर्दा डाल के

इंसान हैं  हम  गलतियाँ  सबसे  होती  है
झुक जाओ तो रख दे लोग जां निकाल के

माँ  सीता  को  पड़ी  देनी   अग्निपरीक्षा
फिर भी  माना राम ने  घर से निकाल के

गैरों के लिए अपनो का  त्याग कर दिया
पूजते है उन्हें आज भी  बिना सवाल के

दीये  जलाये  कितने   अंधेरा  दिल  है
ढूंढ़ें  ख़ुद को  कैसे  ख़ुद से निकाल के

डंके की चोट पर जो कहता है बात सच
वही खड़ा कटघरें में आज दिनदयाल के


दिनदयाल ईश्वर को कहा गया है

                               



Thursday, October 20, 2016

नज़र में हुनर है

                               
नज़र में हुनर है शरीके मुहब्बत
हिला ये जिगर है शरीके मुहब्बत

नज़रों से नज़रें मिला कर  देखो
हुआ क्या असर है शरीके मुहब्बत

जु़बा खोलती है हया बोलती है
मीठी इक ख़ंजर है शरीके मुहब्बत

समन्दर-सी लहरें उठने लगी है
तुम्हें क्या खबर है शरीके मुहब्बत

बहुत चाहती है, सबको पता है
ख़ुद से बेख़बर है शरीके मुहब्बत

जमाने का डर क्यूँ दिल मे है तेरे
साथ ये दिलबर है शरीके मुहब्बत

आगाज है ये अंजाम की फिक़र क्यूँ
तय जब ये सफ़र है शरीके मुहब्बत

मुहब्बत के फूल खिलने को आये
क्या हसीं मंजर है शरीके मुहब्बत

सँवर तुम रहे औ बिखर हम रहे हैं
ये भी इक मेहर है शरीके मुहब्बत

बहुत हुआ फ़ासलाओं से यारी
यार तू किधर है शरीके मुहब्बत

हुनर- कला,कारीगरी
शरीक-साथी,साझी
आग़ाज-आरंभ
अंजाम- परिणाम
मंज़र- दृश्य
मेहर- दया,कृपा
फ़ासला- दूरी

                                 






Saturday, October 15, 2016

महबूब इश्क का ज़माना चाहें

                               
जाम तोडू भी तो आँखों से पिलाना चाहें
मेरी महबूब वही इश्क का ज़माना चाहें

बैठे पहलू में साथ मुझको बिठाना चाहें
इसकदर प्यार बार बार वो जताना चाहें

चाहें करता रहूँ,गुफ्तगू दिन रात उससे
बातों बातों में धड़कने वो बढ़ाना चाहें

बेवजह बात बढाकर के सताये वो कभी
कही गैरों से मिलके मुझको जलाना चाहें

कभी हर दर्द बाँट ले वो फरिश्तो की तरह
मेरे हर जख़्म को सहलाकर मिटाना चाहें

मेरी नाराज़गी भी इक पल गवारा न उसे
रूठ जाऊँ तो गले हँस कर लगाना चाहें

समझना चाहा जितना उतना उलझा हूँ
इस पहेली को अब दिल सुलझाना चाहें

झूका लूँ सिर सजदे में तमन्ना है मेरी
मेरे खातिर जो ख़ैर रब से मनाना चाहें

मेरी खुशिया दामन में उसके बिखरे ऐसे
जैसे कोई चाँद सितारे बिछाना चाहें

                               

Thursday, October 13, 2016

जख़्म खिलने लगे हैं आजकल

                                 
जख़्म खिलने लगे हैं आजकल
खुल के मिलने लगे हैं आजकल

जैैसे जन्मों का इनसे रिश्ता हो
अपने लगने लगे हैं आजकल

ऐसे बैठे हैं जम के महफिल में
सनम लगने लगे हैं आजकल

अश्क आते नहीं अब आँखों में
बर्फ  जमने लगे  हैं आजकल

मेरी खुशियों से कोई रंजिश हो
जलने-भूनने लगे हैं आजकल

जिनसे दिली-करीबी रिश्ता था
वो बदलने लगे हैं आजकल

चाँद तन्हा  ये  रात तन्हा-सी
मुझमे पलने लगे हैं आजकल

अब न शिकवा- शिकायत कोई
लब सीलने लगे हैं आजकल

कहना चाहें भी कुछ किससे कहे
कोई न अपने लगे हैं आजकल

                                 






Saturday, October 1, 2016

बड़ा प्यारा माँ का दरबार

                               
बड़ा ही प्यारा माँ तेरा सलोना दरबार लगता
उससे भी प्यारा माँ तेरा सलोना श्रृंगार लगता

झूम के आया नवरात्री का नौ दिन
जय माता दी बड़ा प्यारा माँ तेरा जयकार लगता

लाल-लाल चुनरी शेर सवारी
घर-घर छाया माँ तेरा है प्यारा ये बहार लगता

पान सुपारी लौंग चढ़ाऊँ
और केला-नारियल से भरा है तेरा द्वार लगता

दुखहरणी सुखकरणी भवानी
तेरी महिमा से मईया जी नईया भव से पार लगता

तेरी शरण मे जो भी आये
मनचाहा पा जाये मईया जी बार-बार लगता

प्यारो से प्यारी माँ जगदम्बा
कृपा तेरी निराली मईयाजी अपरम्पार लगता

द्वार खड़ी हूँ आश लगाये
तू ही करेगी उपकार और मेरा उद्धार लगता

जय माता दी गूँज उठा है
तेरे जयकारा से मईया समाँ भी गुलज़ार लगता