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Thursday, October 13, 2016

जख़्म खिलने लगे हैं आजकल

                                 
जख़्म खिलने लगे हैं आजकल
खुल के मिलने लगे हैं आजकल

जैैसे जन्मों का इनसे रिश्ता हो
अपने लगने लगे हैं आजकल

ऐसे बैठे हैं जम के महफिल में
सनम लगने लगे हैं आजकल

अश्क आते नहीं अब आँखों में
बर्फ  जमने लगे  हैं आजकल

मेरी खुशियों से कोई रंजिश हो
जलने-भूनने लगे हैं आजकल

जिनसे दिली-करीबी रिश्ता था
वो बदलने लगे हैं आजकल

चाँद तन्हा  ये  रात तन्हा-सी
मुझमे पलने लगे हैं आजकल

अब न शिकवा- शिकायत कोई
लब सीलने लगे हैं आजकल

कहना चाहें भी कुछ किससे कहे
कोई न अपने लगे हैं आजकल

                                 






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